________________
सूत्र
पंचांग विवाह पण्णचि (भगवती) मूत्र 428
womanwwwwwwwwwwwwwimminarrrrrrrrram
मिच्छविट्ठी । णो णाणी दो अण्णाणा णियमं ॥ समुग्घाया आदिल्लातिण्णि ॥ आउ अज्झवसाणा अणुबंधोय जहेव असण्णाणं अवसेस जहा पढमगमए जाव कालादेसेणं जहण्णेणं सवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमम्भहियाइं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई
२५५५ घउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अग्भहियाइं एवइयं कालं जाव करेजा ॥ ३६ ॥ सोचेव जहण्ण कालठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं दसवाससहस्सठिईएसु उक्कोसेणवि दसवास सहस्सट्ठिईएमु उबवजेजा ॥ तेणं भंते ! एवं सोचेव चउत्थो गिरवसेसो भाणियो
जाव कालादेसणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाई उक्कोसेणं E असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट प्रत्येक धनुष्य की. यहां पर तीन लेश्या, दृष्टि मिथ्यादृष्टि, दो अज्ञान
की नियमा, तीन समुद्धात, आयुष्य, अध्यवसाय और अनुबंध ये तीनों जैसे जघन्य स्थिति के असंशी का.. गमा कहा वैसे कहना. और सब कथन पहिले गमा जैसे कहना. यावत् काल आश्री जघन्य दश हजार वर्ष अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम चार अंतर्मुहूर्त अधिक इतने काल तक सेवे यावतू गतागत करे । ॥ ३६॥ वही जघन्य स्थिति वाली नारकी में उत्पन्न हुआ जघन्य दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट भी दश हजार वर्ष की स्थिति में उत्पन होवे वगैरह चौया गया जैसे यहां कहदेना यावत् .काला देश से अघन्य ।
wammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
488+-चौवीसवा शतकका पहिला उद्देशा 438
भावार्थ
1