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केवइयकालट्ठिईएसु उववजेजा ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सदिईएसु उक्कोसेणंवि दसवाससहस्सट्टिईएमु जाव उववज्जेज्जा ॥ तेणं भंते ! जीवा एवं सोचेव पढमगमओ णिरवसेसो भाणियवो जाव कालादेसेणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाइं उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवइयं कालं सेवेज्जा जाव करेज्जा॥३४॥सोचेव उक्कोसकालट्टिईएसु उबवण्णो जहण्णणं सागरोवमट्टिईएस उक्कोसेणवि सागरोवमठिईएसु अवसेसो परिणामादीवो, भवादेसे पज्जव
साणे सोचेव पढमगमगो तब्बो,जाव कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भचाली नरक में उत्पन्न होने योग्य होवे वे कितने कालकी स्थिति से उत्पन्न होये ? अहो मौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष व उत्कृष्ट दश हजार वर्ष की स्थिति में उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! वे जीवों ऐसे ही यह गमा भी प्रथम गमा जैसे कहना. यावत् कालादेश से जघन्य दश हजार वर्ष और अंतर्मुहून अधिक उत्कृष्ट चार पूर्व क्रोड और चालीस हजार वर्ष अधिक इतना काल तक रहे. यह दूसरा गमा जानना ॥ ३४ ॥ वही पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्यत्राला उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ठ एकसागरोपमकी स्थिति से उत्कृष्ट होवे और परिणाम आदिसब अधिकार भवादेश पर्यंत पूर्वोक्त प्रथम गमा जानना: यावत् कालादेशसे जघन्य
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
भावार्थ
चौवीसवा शतक का पहिला उद्देशा 488