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सूत्र
भावार्थ
488+- पंचांग विवाह पणचि ( भगवती ) सूत्र
गोयमा ! भवादेसेणं दोभवग्गणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमन्भहियाई, उक्कोसेणं पलिओत्रमस्स असंखेज्जइ भागं पुन्त्र कोडिमन्भहियं एवइयं कालं सेवेजा एवइयं कालं गतिरागतिं करेजा ॥ २० ॥ पज्जत असणि पंचिदिय तिरिक्ख जोणिएणं भंते ! जे भविए जहण्णकालट्ठिईएस रयणप्पभापुढवि रइए उववजित्तर से भंते! केत्रइय कालट्ठिईएस उववज्जज्जा ? गोयमा ! जहणेणत्रि दस वाससहस्सठिईएस उक्को सेणवि दस वाससहस्सट्ठिईएस उववज्जेज्जा ॥ २१ ॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ? एवं सव्वा वत्तव्वया णिरवसेसा
होकर पुनः असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्येच को कितने काल तक सेवे ? और कितनी गतागत करे ? अहो गौतम भवादेश से दो भव करे और कालादेश से जघन्य दश हजार वर्ष और अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यात वा भाग और पूर्व क्रोड अधिक इतना काल तक अमंज्ञी पर्याप्त तिर्यचपना सेत्रे और इतनी गतागत होत्रे ॥ २० ॥ अहो भगवन् ! जो पर्याप्त अमेझीतिर्येच पंचेन्द्रिय जघन्य स्थिति वाली {रलप्रभा पृथ्वी में नारकीपने उत्पन्न होने योग्य होता है वह काल से कितना काल तक उत्पन्न होता
है ? अहां गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष की स्थिति वाला और उत्कृष्ट भी दश हजार वर्ष की स्थिति वाला नारकी में उत्पन्न होवे ॥ २१ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों एक सयम में कितने उत्पन्न होते हैं ? अहो
* चौवीसना शतक का पहिला उद्देशा +8+
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