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सूत्र
भावार्थ :
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भाणिव्वा जाव अणुबंधोति ॥ २२ ॥ सेणं भंते । यजन्त असणि पंचिदिय तिरिक्खजोगिए जहण कालठिईय रयणप्पभा पुढवि णेरइए जहणकाल पुणरवि अपजत अमणि जात्र गतिरागति करेज्जा ? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई कालादेसेणं जहणेणं दसवास सहस्ताई अंतो मुहुत्तमम्भहियाई, उक्कांसेणं पुव्वकोडी दसवाससहस्सेहिं अमहिया एवइयं कालं सेवेजा, एवइयं कालंगतिरागतिं करेजा ॥ २३ ॥ पंजत असणि पंचिदिय तिरिक्ख जोणिएणं भंते ! जे भविए उक्कोस - कालट्टिईएस रयणप्पभाए पुढवीए रइएस उबवजित्तए सेणं भंते! केवइयंकाल गौतम ! इस की मत्र वक्तव्यता विशेषता रहित अनुबंध तक पूर्वोक्त जैसे कहना. अहो भगवन् ! पर्याप्त असंही तिर्यच पंचेन्द्रिय जघन्य कालस्थिति वाली रत्नप्रभा नारकी में जघन्य काल स्थिति और पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय यावत् कितनी गति आगति करे ? अहो गौतम ! भवादेश से दो भव में और काला देश मे जघन्य दश हजार वर्ष व अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट पूर्वकंड और दश हजार वर्ष इतना काल तक (मेवे और उतनी गति आगति करे || २३ || असे भगवन्! पर्याप्त अशी पंचेन्द्रिय तिर्येव उत्कृष्ट स्थिति वाली नारकी में उत्पन्न होने योग्य होता है वह कितने काल की स्थिति से उत्पन्न होते ! अहो मौतम !
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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