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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
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केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहुत उक्कोसेणं पुवकोडि. ॥ १७ ॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ अझवसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता ॥ तेणं भंते ! किं पसत्था अप्पसत्था ? गोयमा ! पसत्यावि अप्पसत्थावि ॥१८॥ तेणं भंते ! पजत्ताअसण्णि पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएत्ति कालओ केवचिरंहोइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुल्वकोडि ॥ १९॥ सेणं भंते! पजत्त असणि पंचिंदियतिरिक्खजाणिए रयणप्पभापुढवीणेरइए पुणरवि पजत्त अस
णि पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएत्ति केवइयं कालं सेवेजा केवइयंकालं गतिरागति करेजा ? परंतु नपुंसक वेदी हैं॥१६॥स्थिति द्वार अहो भगवन् ! उन की स्थिति कितनी कही ? अहो गौतम ! उन के स्थिति जघन्य अनर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! उन जीवों को कितने अध्यवनाय कहे हैं ? अहो गौतम ! असंख्यात अध्यवसाय कहे हैं ? अहो भगवन् ! क्या वे प्रशस्त या अप्रशस्त हैं ? अहो गौतम ! उन के अध्यवसाय प्रशस्त और अप्रशस्त भी है. ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! अंमंत्री तिर्यंच पंचेन्द्रिय काल से कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट पूर्वक्रोड ॥ ९॥ अहो भगवन् ! पर्याप्त असंत्री पंचेन्द्रिय तियेच रत्नप्रभा पृथ्वी का नारकी
..प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ
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