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________________ २५१५ 47 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + उववजति, कि जेरइएहितो उववज्जति तिरिय मणु देव जहा वकंतीए तहा उववामो णवरं देववज्ज, तेणं भंते ! जीवा एग समएणं केवइया उववजंति ? गोयमा ! जहणणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा उक्कोसणं संखेजावा असंखेजावा उववति ॥ अवहारो जहा उप्पलुद्देसए ॥ २ ॥ एएसिणं भंते ! जीवाणं के महालया सरीरो गाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणं धणुह पुहत्तं ॥ ३ ॥ तेणं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स बंधगा अबंधगा तहेव दो तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात उत्पन्न होवे. + और अपहार जैसे अग्यारहवे शतक में उत्पल उद्देशा में कहा वैसे जानना ॥२॥ अहो भगवन् ! उन के शरीर की अवगाहना कितनी कही ? अहो गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट प्रत्येक धनुष्य ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! वे क्या ज्ञानावरणीय कर्म के बंधक हैं या अबंधक हैं ? उस का सब कथन उत्पल उद्देशे जैसे कहना. अर्थात् वे अबंधक नहीं हैं। + वनस्पति में एक समय में असंख्यात नीवों उत्पन्न होते है वेसानो कथन आगे किया गया है वह साधारण शरीर आश्री किया गया है. यहां शालि मादि प्रत्येक शरीरी धान्य का कथन किया है इस से किसी प्रकार की भिन्नता समझना नहीं. • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी . मावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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