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Patna
भावार्थ
पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) मत्र
॥ एकविंशतितम शतकम् ॥ सालिकल अयसिवंसे, इक्खु दन्भय अब्भतुलसीय ॥ अट्ठ ते दसवग्गा अमीति पुणहोंति उद्देसा ॥ १ ॥ रायगिहे जाव एवं पयासी अह भंते ! साली वीही गोधम जाव जवाणं एएसिणं भंते ! जीवा मूलत्ताए वक्कमति तेणं भंते ! जीवा कओहितो वीमवे शतक में संख्यात आश्री कथन किया. वनस्पति जीवों की संख्या नहीं होने से आगे इस का प्रश्न पूछते हैं. इस शतक के अस्सी उद्देशे कहे हैं. १ शाली धान्यका २ कल (चने) धान्यका में ३ अतमीका ४ वंशादि पर्व ५ इक्ष्वादि ६ दर्भ ७ एक वृक्ष में दूसरा विजातीय वृक्ष विशेष उत्पन्न होवे । सो अध्यारोहक ८ तुलसी प्रमुख वनस्पति. ये आठ उद्देशे कहे एक २ उद्दशे के ? मूल, २ कंद, ३ स्कंध,
४ त्वचा, ५ शाल, ६ प्रवाल, ७ पत्र. ८ पुष्प ९ फल और १० बीज यो दश २ उद्देशे कहे सब मीलकर । अस्सी उद्देशे हुवे ॥ १॥ अब पहिला उद्दशा का वर्णन करते हैं. राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में
यावत् ऐसे बोले शाली, व्रीहि, गोधूम यावत् यव में जो जीवों मूलपने. उत्पन्न होते हैं वे जीव कहां से
उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नारकी में से उत्पन्न होते हैं तिर्यंच मनुष्य व देव बगैरह जमे पन्नाणा के छठे o पद में उत्पाद कहा वैसे ही यहां पर कहना. यहां पर नारकी में से उत्पन होवे नहीं परंतु तिर्यंच मनुष्योम
उत्पन्न होवे. महो भगवन् ! वे जीवों एक समय में किचने उत्पन्न होने ! महा गौतम । जघन्य एक
Pos इक्कीसवा शतक का पहिला उद्देशा at:
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