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शब्दार्थ नहीं या० जानते हैं सं० संवर का अ० अर्थ न नहीं या. नानते हैं थे० स्थविर वे. विवेक ण..
नहीं या० जानते हैं वि० विवेक का अर्थ वि० कायोत्सर्ग वि० कायोत्सर्ग का अर्थ न० नहीं या० जानते हैं त० तब ते वे थे० स्थविर का कालामवेसित पुत्र अ० अनगार को ए. ऐसा 4. कहे जा० जानता हूं अ० आर्य मा. सामायिक जा० जानता हूं अ० आर्य सा० सामायिक का अर्थ जा०
अजो सामाइयं, जाणामोणं अज्जो सामाइयस्स अट्रं, जाव जाणामोणं अजो विउस्सग्ग
स्स अटुं । तएणसे कालासवेसियपुत्ते अणगारे ते थेरे भगवंते एवं वयासी, जइणं कई अजो तुन्भे जाणह सामाइयं, जाणह सामाइयस्स अटुं, जाव जाणह विउस्सग्गस्स
___ अटुं; के भे अजो सामाइए ? केभे सामाइयस्स अटे, जाव के भे विउसग्गस्स भावार्थ नोइन्द्रिय का निग्रह रूप संवर तुम नहीं जानते हो, अनाश्रवपना सो संवर का अर्थ तुम नहीं जानते हो,
विशिष्ट बोध रूप विवेक तुम नहीं जानते हो, त्याग व त्यागादि जो विवेक उस का अर्थ तुम नहीं जानते. हो, त्यागरूप कायोत्सर्ग तय नहीं जानते हो, और कायोत्सर्ग का अर्थ तम नहीं जानते हो. तब श्री स्थ-: विर भगवंत उन कालासवेसित पुत्र अनगार को ऐसे बोले कि अहो आर्य ! मैं समपरिणाम रूप
सामायिक जानना हूं. कर्भका अनुपादान व निर्जरा रुप सामायिक का अर्थ मैं जानता हूं यावत् कायो-al | Vत्सर्ग व कायोत्सर्ग का अर्थ मैं जानता हूं-तब कालासवेसित पुत्र नामक अनगार उन स्थविर भगवंत को
दिक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी घालाप्रसादजी *
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