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शब्दार्थ में उस समय में पा० पार्श्वनाथ के अ० शिष्य का कालासवेसित पुत्र अ० अनगार जे. जहां थे० स्थविर
भ० भगवन्त ते० तहां उ० आये उ आकर थे० स्थविर भ० भगवन्त को एक ऐसा व०कहा थे० स्थविर, सा० सामायिक ण, नहीं या० जानते हैं थे० स्थविर सा० सामायिक का अ० अर्थ ण. नहीं या० जानते हैं थे० स्थविर प० प्रत्याख्यान न० नहीं या० जानते हैं थे० स्थविर प. प्रत्याख्यान का अर्थ ण नहीं या जानते हैं थे स्थविर सं०संयम व संयम का अर्थ नः नहीं जानते हैं थे स्थविर सं० संवर ण
थेरां सामाइयं ण याणंति, थे। सामाइयस्स अटुंणयाणंति, थेरा पच्चक्खाणं नयाणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अटुं णयाणंति, थेरा संयम णयाणंति, थेरा संजमस्स अटुं णयाणंति, थेरा संवरं णयाणंति, थेरा संवरस्स अटुं नयाणंति, थेरा विवेगं णयाणंति, थेरा विवेगस्स अटुं ण याणंति, थेरा विउस्सग्गं णयाणंति, थेरा विउस्सग्गस्स अटुं नया
णति ॥ तएणं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी, जाणामोणं भावार्थ | भगवन्त को ऐसा कहने लगे. अहो स्थविर ! तुम समताभाव रूप सामायिक नहीं जानते हो, कर्म का
अनुपादान व निर्जरारूप सामायिक का प्रयोजन को नहीं जानते हो, पोरिशी वगैरह प्रत्याख्यान तुम।
नहीं जानते हो, आश्रय द्वार निरोध रूप प्रत्याख्यानका प्रयोजन तुम नहीं जानते हो, पृथिव्यादि का संरक्षण 12 रूप संयम तुम नहीं जानते हो, अनाश्रवपना सो संयम का अर्थ तुम नहीं जानते हो, इन्द्रिय
(भगवती) 28- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (
पहिला शतकका नववा उद्देशा8080