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________________ शब्दार्थ १ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी *र्थिक ए. ऐसा आ० कहते हैं जा. यावत् प० परभवका आ० आयुष्य जे• जो ते वे ए. ऐसा आok कहते हैं मि० मिथ्या ते वे आ० कहते हैं अ० मैं पु. फीर गो० गौतम ए. ऐसा भा० कहता हूं जा. यावत् प० प्ररूपता हूं ए. एक जीव ए. एक समय में ए० एक आ• आयुष्य प० बांधे से वह | २२२ ए. ऐसे भं० भगवन् भ० भगवान गो. गौतम जा. यावत् वि. विचरते हैं ॥ १४ ॥ ते० उसकाल ते०१ इह भावयाउयं पकरेइ । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेइ तंजहा इह भवियाउयंवा परभवियाउयंवा सेवं भंते भत्तेत्ति भगवं गोयम जात्र विहरइ ॥ १४ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावञ्चिन्ने कालासवेसियपुत्ते णामं अणगारे, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, थेरं भगवं एवं वयासी समय में इस भवका आयुष्य नहीं बांधता है. इस भव का आयुष्य बांधते परभव का आयुष्य नहीं बंधाता है. और परभव का आयुष्य बांधते इस भव का आयुष्य नहीं बंधाता है. इसी से एक जीव एक समय में इस भव का अथवा परभव का ऐसे एक भव का आयुष्य बांधता है. अहो भगवन् ? आपने कहा सो यथा तथ्य है ऐसा गौतम स्वामी कहकर विचरने लगे ॥१४॥ उस काल उस समय में श्री पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्य कालासवेसितपुत्र नामक अनगार जहां भगवंत श्री महावीर स्वामी के शिष्यथे वहां आये और स्थविर, प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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