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शब्दार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 48
से प० परभव का आयुष्य प-वांधे प०परभवका आयुष्य प०बांधने से इ० यह भवका आ०आयुष्य फ०बांधे ? ० ए० ऐसे ए० एक जीव ए. एक समय में दो० दो आयुष्य प० बांधे इ० इस भवका आ० आयुष्य ५० परभवका आयुष्य से वह क• कैसे ए० इस भं• भगवन् प० ऐसे गो० गौतम जं. जो अ० अन्यती
गोयमा ! जण्णंते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति जाव परभवियाउयंच, जे ते एव माहंसु मिच्छंते एव माहंसु ॥ अहं पुण गोयभा ! एव माइक्खामि जाव परूवेमि एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेइ. तंजहा-इहभवियाउयंवा, परभवियाउयंवा. । जं समयं इह भावियाउयं पकरेइ जो तं समयं परभवियाउयं पकरेइ, जं समयं परभवियाउयं पकरेइ णो तं समयं इह भवियाउयं पकरेइ, इह भविया
उयस्स पकरणयाए णो परभवियाउयं पकरेइ, परभवियाउयस्स पकरणयाए णो करता है तो अहो भगवन् ! यह किस तरह से है ? अहो गौतम ! अन्य तीर्थी जो ऐसा कहते हैं कि एक जीव एक समय में इस भव व परभव का आयुष्य बांधता है वगैरह जो कहते हैं सो मिथ्या है.00 परंतु अहो गौतम ! मैं ऐसा कहता हूं यावत् प्ररूपता हूं कि एक जीव एक समय में इस भवका अथवा परभव का ऐसे दोनों में से एक भवका आयुष्य बांधता है. जिस समय में इस भवका आयुष्य बांधता है| उस समय में परभव का आयुष्य नहीं बांधता है और जिस समय में परभव का आयुष्य बांधता है उस ।
408883 पहिला शतक का नववा उद्देशा 848862
भावार्थ