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शब्दार्थ स०समय में दो दो आ० आयुष्य प०बांधे इ०इस भवका आयुष्य प०परभवका आयुष्य नं जिस स०समयमें ।
इ.इस भ• भवका आ० अ युष्प प०बांधेतं उस स०समयमें प०परभवका आयुष्य प०बांधे जं०जिससमयमें प०१ परभवका आयुष्यपबांधेतं. उस समयमें इ०इसभवका आयुष्य प०बांधेइ०इस भ० भवका आ० आयुष्यप०बांधने
उयाइं पगरेइ तंजहा-इहभावियाउयंच, परभवियाउयंच, । जं समयं इह भवियाउयं सूत्र
पकरेइ तंसमयं परभवियाउयं पकरेइ, जंसमयं परभवियाउयं पकरेइ तंसमयं इह भवियाउयं पकरेइ; इह भवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं पकरेइ, परभवियाउय
स्स पकरणयाए इह भरियाउयं पकरेइ, एवं खलु एगे जीव एगे समएणं दो आउया| इंपकरेइ तंजहा इह भवियाउयंच, पर भवियाउयंच ॥ से कहमेयं भंते ! एवं ? भावार्थ : इस में विरोध नहीं आता है क्यों की जीव स्वपर्याय समूहात्मक है. जब वह आयुष्य का बंध करता है।
तब दो भव का आयुष्य बांधता है. इस भव का आयुष्य व परभव का आयुष्य. जिस समय में इस भवका आयुष्य का बंध करता है उस समय में परभव के आयुष्य का बंध करता है; और जिस समय में , परभव के आयुष्य का बंध करता है उस समय में इस भव के आयुष्य का बंध करता. है इस भव के आयुष्य का बंध करते परभव के आयुष्य का बंध करता है और परभव के आयुष्य का बंध करते इस भव के आयुष्य का बंध करता है. इसी प्रकार एकही जीव एक ही समयमें दो भव के आयुष्य का बंध
4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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