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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
करने वाले अं० चरिम शरीरी व
बहुत मोहवाले पु० पाहले वि० विचरकर अ० अथ प० पीछे सं० संवृत का० कालकरे त० पीछे सि० सिझे बु० बुझे मु० मुक्त होत्रे जा० यावत् अं० अंतकरे हं० हां गो० गौतम कं० कांक्षा प० द्वेष खी क्षीण जा० यावत् अं० अंतकरे || १३ || अ० अन्य तीर्थिक मं० भगवन् ए० ऐसा आ कहते हैं भाव विशेष कहते हैं प० गोयमा ! अकोहत्तं जाव पसत्थं ॥
कहते हैं प० प्ररूपते हैं ए० एक जी० जीव ए० एक १२ ॥ सेणूणं भंते ! कंखापदोसे खीणे समणे
* पहिला शतकका नववा उद्देशा
णिग्गंथे अंतकरे भवइ अंतिम सारीरिएवा, बहुमोहे विय णं पुचि विहरित्ता, अह पच्छा संबुडे कालं करेइ तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, जाव अंतं करेइ ? हंता गोयमा ! कंखापदोते खीणे जात्र अंतंकरेइ ॥ १३ ॥ अण्णउत्थियाणं भंते ! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति, एवं खलु एगे जीवे एंगेणं सभएणं दो आ{कांक्षा- मिथ्यात्व - मोहनीय कर्मक्षय करनेवाला श्रमण क्या दुःख का अंत करनेवाला होवे ? अथवा चरिम शरीरी व पहिले मोह में रमण करके पुनः लघुभूत शुद्ध बना हुवा काल करे तो क्या सिझता, बुझता, मुक्त होता यावत् सब दुःखों का अंत करता है ? हां गौतम ! कांक्षा प्रद्वेष का क्षय करनेवाला, चरिम शरीरी व { मोहका क्षय करनेवाला संसार का अंत करे || ३ || अहो भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, बोलते हैं, {हेतु सहित कहते हैं, व प्ररूपते हैं कि एकही जीव एक समय में दो प्रकार के आयुष्य का बंध करता है.
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