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42 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अतीतकाल अ० अनागते काल स० सर्वपना काल च० चौथा पद में ॥ १० ॥ से० वह मं० भगवन् ला० लघुता अ० अल्पइच्छा अ० मूर्च्छारहित अ० अगृद्धी अ० अप्रतिबन्ध स० श्रमण निः निग्रंथ को पत्रशस्त हूं ०हां गो० गौतम ला ० लघुता जा ० यावत् प ० प्रशस्त ॥ ११ ॥ भं० भगवन् अ० क्रोध रहित अ०मान रहित अ० मायारहित अग्लोभ रहित स० श्रमण नि० निर्ग्रथ को प० प्रशस्त हं० हां गो० गौतम अ० क्रोध रहित [जा यावत् प० प्रशस्त || १२ || भं० भगवन् कं० कांक्षा प० द्वेष खी क्षीण स० श्रमण निं० निग्रंथ अं० अंत सव्वपूज्जवा, जहा पोग्गलत्थिकाओ, तीता अणागयडा, सव्वा, चउत्थएणं पएणं ॥ १० ॥ सेणूणं भंते ! लाघत्रियं, अप्पिच्छा, अमुच्छा, अगेही, अपडिबढया समणाणं निग्गंथाणं पसत्थं ? हंता गोयमा ! लाघवियं जाव पसत्थं ॥ ११ ॥ सेणूणं भंते अकोहत्तं अमाणत्तं अमायतं अलोभत्तं समणाणं णिग्गंथाणं पसत्थं ? हंता ! अतीत काल, अनागतकाल व सत्र काल में चौथा अगुरुलघुत्व जानना || १० || अब गुरुलघुपने का अन्य प्रकार से प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! श्रमण निर्ग्रन्थ को लघुता, अल्प इच्छा, अमूर्च्छा, अगृ(द्धि, व अप्रतिबन्ध क्या प्रशस्त है ? हां गौतम ! श्रमण निर्ग्रन्थ को लघुता यावत् अप्रतिबन्ध प्रशस्त {है ॥ ११ ॥ अहो भगवन ! श्रमण निर्ग्रन्थ को क्रोध, मान, माया व लोभ रहितपना क्या श्रेष्ठ है ? डां गौतम ! क्रोध रहितपना यावत् लोभ रहितपना श्रमण निर्ग्रन्थ को श्रेष्ठ है ॥ १२ ॥ अहो भगवन्
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *