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________________ जानना हे० शब्दार्थ | {लेश्या ॥ ९ ॥ दि० दृष्टि दं० दर्शन ना० ज्ञान अ० अज्ञान स० संज्ञा च० चौथे पद में ने नीचे के च० चार स० शरीर ना० जानना त० तीसरे पदमें क० कार्माण च० चौथा पद में म० मनजो- १ ग व० वचनजोग च० चौथा पद में का कायाजोग त० तीसरापद में सा० साकारोपयोग अ० अनाकारोपॐॐॐ योग च० चौथापद में स० सर्व द्रव्य स० सर्व प्रदेश स० सर्व पर्यत्र ज० जैसे पो० पुद्गलास्ति काय ती ० सूत्र भावार्थ 48807 पंचद्र हिववपण्णाति ( भगवती ) सूत्र उत्थपणं । एवं जाव सुक्कलेस्सा ॥ ९ ॥ दिट्ठी - दंसण - नाण - अन्नाण- सण्णाओ चउत्थपएणं णेयव्वाई, हेट्ठिल्ला चत्तारि सरीरा नायव्वा तइएणं पणं ॥ कम्मय चउत्थणं पणं ॥ मणजोगे, वइजोगे, चउत्थएणं पदेणं ॥ कायजोगो तइयएणं पणं ॥ सागारोवओगो, अणागारोवओगो चउत्थपदेणं ॥ सव्वदव्वा, सव्वपदेसा, कृष्ण लेश्याका कहा वैसे ही नील, कापुत, तेजो, पद्म व शुक्ल लेश्या का जानना ॥ ९ ॥ दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान व संज्ञा में अगुरुलघुत्व जानना. उदारिक, वैक्रेय, आहारक व तेजस शरीर में गुरु लघुत्व और कार्माण शरीर में अगुरु लघुत्व जानना. मनयोग वचन योग में अगुरु लघुत्व और काय योग में गुरुलघुत्व जानना साकारोपयुक्त व अनाकारोपयुक्त उपयोग में अगुरु लघुत्व. धर्मास्तिकायादि षडूद्रव्य, उन के सब प्रदेश, व सव पर्यवको पुत्रलास्तिकाय जैसे गुरुलघु व अगुरुलघु दोनों कहना. - पहिला शतक का नवत्रा उद्देशा 4 २१७
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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