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शब्दार्थ गु० गुरु नो० नहीं ल० लघु नो नहीं गु० गुरुलघु अ. अगुरुलघु ॥ ७॥ स समय क. कार्माण
वर्गणा च० चौथा प० पद में।। ८॥ क० कृष्ण ले० लेश्या भं०भगवन् कि क्या ग• गुरु जा०यावत् अ० 2 अगुरुलघु गो० गौतम नो० नहीं गुरु नो० नहींलघु गु गुरु लघु अ० अगुरु लघु से वह के कैसे दद्रव्य लेश्या प० प्रत्यय त० तीसरापद भा० भाव लेश्या प० प्रत्यय च० चौथा पद ए० ऐसे जायावत् सु.शुक्ल हुए अगुरुयलहुए ॥७॥ समया कम्माणियचउत्थपएणं, ॥८॥ कण्हलेसाणं भंते ! किं । गरुया जाव अगुरुयलहुथा ? गोयमा ! नोगुरुया, नोलहुया, गरुयलहुयावि,
अगुरुयलहुयावि । सेकेण?णं ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च तइयपएणं, भावलेरसंफ्डुच्च भावार्थक
नहीं, लघु नहीं गुरुलघु नहीं परंतु अगुरुलघु है ॥ ७ ॥ काल-अमूर्त होने से और कर्मवर्गणा के पुद्गल ने अगुरु लघु होते हैं ॥ ८॥ अहो भगवन् ! कृष्ण लेश्या क्या गुरु, लघु यावत् अगुरु लघु है ? गौतम । कृष्णलेश्या गुरुनहीं, लघुनहीं, गुरुलघु, व अगुरु लघु है. अहो भगवन् किस कारन से कृष्ण लेश्या गुरु लघु . व अगुरुलघु है ? अहो गौतम ! द्रव्य लेश्या की अपेक्षा गुरुलघु है क्यों की द्रव्य लेश्या उदारिक शरीर से के वर्ण वाली है और उदारीक शरीर गुरुलघु है इसलिये कृष्ण लेश्या द्रव्य लेश्या की अपेक्षा से गुरु लघु
जानना और भाव लेश्या की अपेक्षा से अगुरुलघु जानना क्यों की भाव लेश्या. जो जीव परिणाम वह * अमूर्त होने से अगुरु लघु होते हैं इसलिये भाव लेश्या की अपेक्षा से कृष्ण लेश्या अगुरुलघु जानना जैसे
रीमान श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
अनुवादक-यालब्रह्म