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49+पंचमांग विवाह पण्णचि (भगवती) सूत्र 488
केणटेणं भंते ! जाव समजिया ? गोयमा ! जेणं सिद्धा चुलसहिएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं सिद्धा चुलसीतिसमजिया, जेणं सिद्धा जहण्णेणं एक्कणवा दोहिंवा तिहिंवा उक्कोसेणं तेसीतिएणय पवेसणएणं पविसंति तेणं सिडा णो चुलसीति
२५०.. समाजिया, जेणं सिद्धा चुलसीइएणं अण्णेणय जहण्णणं एकणवा दोहिंवा तिहिंवा उक्कोसेणं तेसीतिएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं सिद्धा चुलसीतिय णो चुलसीतिएय समजिया से तेणटेणं जाव समजिया ॥ एएसिणं भंते! जेरइयाणं चुलसातिसमाजयाणं णो चुलसीतिसमज्जियाणं सब्वेसि अप्पाबहुगं जहा छक्क समज्जियाणं जाव समार्जित है, नो चौरासी समानित हैं, चौरामी नो चौरासी समार्जित है, परंतु बहुत चौरासी व बहुत चौरासी बहुत नो चौरासी समाजित नहीं हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है यावत् । समार्जित है ? अहो गौतम ! जो सिद चौरासी प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे सिद्ध चौरासी समाजित है, जो सिद्ध जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट ध्यासी प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे सिद्ध नोचौरामी समानित हैं, जो सिद चौरासी प्रवेशन से प्रवेश करते हैं और जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट ध्यासी प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे सिद्ध चौरासी नो चौरासी ममार्जित है बहो गौतम ! इसलिये ऐसा कहा गया है यावत् समा- ।
432बीमवा शतक का दवा उद्देशा 480
भावार्थ