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________________ ભાવાર્થ अनुवादकपालह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी जिया, जेणं गैरइया गेहिं चुलसीतिएहिय पवेसणगं पविसंति तेणं णेरड्या चुलसीतिएहिप समजिया जेणं शेरइया गेहिं चलसीतिएहिय अण्णेणय जहण्णेणं एक्केणया जा उसेणं तसीति एवं जात्र पविसंति तेगं णेरइया चुलसीतिएहिय णो चुलसीतिएणय समजिया से तेलट्टेणं जाव समज्जियात्रि || एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढवीकाइया तहेव पच्छिल्लएहिं दाहिं नवरं अभिलावो चुलसीतिओ एवं जाव वणस्सइकाइया । इंदिया जाव माणिया जहा पेरइया || सिद्धाणं पुच्छा ? गोयमा ! सिद्धा चुलसीति समज्जियाविणो चुलमीति समजियावि, चुलसीतिय णो चुलसीतिय समज्जिया वि णो चलसीतिहिय समजिया जो चुलसीतिहिय णो चुलसीति समज्जिया ॥ से दो तीन उष्ट त्रियानी प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे चौरानी नो चौरासी ममार्जित हैं, जो नारकी बहुत चौरानी प्रवेश ने प्रवेश करते हैं वे बहुत चौरानी ने सर्जिक और जो नारकी बहुत चौरासी प्रवेशन से प्रवेश करते हैं और उपर एक, दो, तीन उत्कृष्ट त्रिवासी प्रवेश से प्रवेश करते हैं वे बहुत चौरासी नो चौरासी समार्जित हैं. अहो गौतम ! इसलिये ऐसा कहा गया है. ऐसे ही असुरकुमार { कुमार पर्यंत कहना. पृथ्वीकाया में पीछे के दो गया कहना और ऐसे ही वनस्पति काया बइन्द्रिय यावत् वैमानिक पर्यंत नारकी जैसे कहना. सिद्ध की पृच्छा, अहो गौतम ! यावत् स्वत पर्यंत कहना सिद्ध चौरासी * प्रकाशक राजावहदुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालामपादजी २५०८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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