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१६ पंचमांग विवाह पस्णत्ति ( भगवती) सूत्र 488+
तिवा ओसप्पिणीतिबा ? णो इण? सम? ॥ ३ ॥ एएसुणं भंते पंचसु भरहेसु पंचमु एरवएसु अत्थि उस्सप्पिणीतिवा ओसप्पिणीतिवा? हंता अत्थि ॥४॥ एएसुणं पंचसु महाविदहेसु णेवत्थि ओमप्पिणीतिवा उस्सप्पिणीतिवा, अवट्टिएणं तत्थकाले पण्णत्ते? समणाउसो ! ॥५॥ एएमुणं भंते ! पंचमु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो पंचमहन्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवेति? णो इणट्रे सम२॥६॥ एएसुण पंचम भरहेमु पंचक्षु एरवएस पुरिम पच्छिमगा दुवे अरहंता भगवंतोपंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवेति, अवसेसाणं
अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति एएसुणं पंचसु महाविदेहेसु अरहता भमि में क्या उत्पणी व अवसर्पिणी है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थात् वहां अपमर्पिणी उत्सर्पिणी नहीं है. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! इन पांच भरत एरवत में क्या अवमर्पिणी उत्सर्पिणी है ? हा है. ॥ ४ ॥ अहा आयुष्यमन्त श्रमणों ! इन पांच महाविदेह क्षेत्रमें अवपिणी उत्सर्पिणी काल नहीं हैं परंतु अवस्थित काल है. अहो भगवन् ! इन पांच पहाविदेह क्षेत्र में जो अरिहंत भगवंत होते हैं वे क्या प्रतिक्रमण सहित पांच महाव्रत रूप धर्म प्ररूपते हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् नहीं प्ररूपते हैं. ॥ ६ ॥ अहो गौतम ! इन पांच भरत एरवत में पहिले छेल्ले दो अरिहंत भगवंत प्रतिक्रम सहित पांच महावत प्ररूपते हैं शेष सब चार याम-रूप धर्म कहते हैं ? इन पांच महाविदेह क्षेत्र में अरिहंत भगवंत चार
भावार्थ
बीएबा शतक का आठवा उद्देशा89%
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