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________________ |२४८० भंते ! भंतेत्ति ॥ वीसइमस सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २० ॥ ७ ॥ कइविहेणं. भंते ! · कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ ! गोयमा ! पण्णरसकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ,' तंजहा- पंच भरहाइ, पंचएरवयाई, पंचमहाविदेहाइं ॥ १ ॥ कइविहेणं भंते ! अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तीसं अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा-पंचहेमवयाई, पंचऐरण्णवयाई, पंच हरिवासाइं. पंचरम्मगवासाई, पंचदेवकुराइं, पंचउत्तरकुराइं ॥ २ ॥ एएसुणं भंते ! तीसासु अकम्मभूमीसु अस्थि उस्सप्पिणी अहो गौतम ! तीन बंध कहे हैं. जीव प्रयोग बंध अनंतरा ब परंपरा बंध. अहो भगवन् ! आपके वचन भावार्थ सत्य हैं यह बीसवा शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २० ॥ ७ ॥ . सातवे उद्देशे में बंध का कथन किया. बंध का अंत कर्मभूमि में होता है इसलिये आठवे - उद्देशे में कर्मभूमिका कथन करते हैं. अहो भगवन् ! कर्म भूभियों कितनी कहीं ? अहो गौतम ! पनरह कर्मभूमियों कहीं-जिनके नाम पांच भरत पांच एरवत और पांच महाविदेह ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! अकर्म } ल भूमि के कितने भेद कहे हैं. ? अहो गौतम : अकर्मभूमि के तीस भेद कहे हैं. पांच हेमवय, पांच एरणवय, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक वर्ष, पांच देवकुरु व पांच उत्तरकुरु. ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! इन तीस अकर्म 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी" * प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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