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________________ सूत्र - पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र भावार्थ | ओरालय सररस्स: जाव कम्मग सररीरस्स आहारसण्णाए जाव परिग्गहसणाए ॥ कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए ॥ सम्मदिट्ठीए मिच्छाद्दिट्ठीए सम्मामिच्छाद्दिट्ठीए ॥ आभिणिवोहिय णाणस्स जात्र केवलणाणस्स, मइअण्णाणस्स सुअअण्णाणस्स विभंग णाणस्स एवं ॥ आभिणिबोहियणाणविसयरसणं भंते! कइविहे बधे पण्णत्ते जाव केवल विसयस विमति अण्णाणविसयस्स, सुअअण्णाण विसयस्त, विभंगणाणविसयम संपदातिविहे बंधे पण्णत्ते, सव्वेते चउवीसदंडगा भाणियन्त्रा णवरं जाणि यन्त्र जस्स जं अत्थि जाव वैमाणिए ॥ विभंगणाणविषयस्स कइविहे बंधे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण ते तंजहा- जीवप्पओग बंधे अनंतर बंधे परंपर बंधे ॥ सेवं { शरीर आहार संज्ञा यावत् परिग्रह संज्ञा का जानना. कृष्णलेश्या यावत् शुक्ल लेश्या, समदृष्टि मिध्यादृष्टि व {सम मिध्यादृष्टि अभिनिवोधिकज्ञान यावत् केवल ज्ञान, मतिअज्ञान, श्रुत अज्ञान व विभंग ज्ञान का कहना ऐसे ही अभिनिवोधिक ज्ञान के विषय के कितने बंध कहे हैं यावत् केवल ज्ञान विषय के कितने बंध कडे हैं? तीन भेद कहे हैं. मतिअज्ञान विषय, श्रुत अज्ञान विषय और विभंग ज्ञान विषय के भी तीन भेद कहे हैं. वे ॐ सब चौबीस दंडक पर उतारना. याश्त् अहो भगवन् ! विभंगज्ञान विषय के कितने बंध कहे हैं ?? शतक का मात्रा उद्देशा २४७९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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