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कालएय णीलएय लोहियएय हालिहएय सुक्किल्लएय १ सियकालएय णीलएय लोहियएय हालिबएय सुकिल्लगाय २, एवं परिवाडीए एकतीसं भंगा भाणियन्वा जाव सिय कालगाय णीलगाय लोहियगाय हालिहगाय सुकिल्लएय एकतीसं भंगा॥ एवं एक्कग दुयग तियग चउक्कग पंचग संजोगेहिं दो छत्तीसं भंगसया भवंति ॥ गंधा जहा अटुपदेसियस्स ॥ रसा जहा एयस्स चेव वण्णा ॥ फासा जहा चउप्पदेसियस्स ॥ ९॥ दसपदेसियस्सणं भंते ! खंधे पुच्छा । गोयमा ! सिय एगवण्णे-जहा णवपदेसिए जाव
चउफासे पण्णत्ते ॥ जइ एगवण्ण-एगवण्ण दुवण्ण तिवण्ण चउवण्णा जहेव णव भावार्थ सो स्यात् काला, हरा, लाल पीला व श्वत एक २ स्यात् काला, हरा, लाल व पीला एक शुक्ल अनेक
इस परिपाटि से एकतीस भांगे कहना यारत् स्यात् काला, हरा, लाल पीला एक त अनेक यों एक संयोगी ५ द्विसंयोगी ४० तीन संयोगी ८० चार संयोगी ८० और पांच संयोमी ३१. सब मिलकर वर्ण के १२३६ मांग हुबे. गंध के ६ भांगे, रस के वर्ण जैसे २३६ भांगे, और स्पर्श के चार प्रदेशी स्कंध जैसे "१३० भांगे सब मिलकर नव प्रदेशिक स्कंध के ५१४ भांगे हुवे ॥१॥ अहो भगवन् ! दश प्रदेशिक स्कंध में
कितने वर्नादि पाते हैं ? अहो गौतम ! स्यात् एक वर्ण वगैरह जैसे नव प्रदेशिक का कहा वैसे ही
48 भनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक राजावादुर लालो मुखदवमहायजी ज्वालामसादजी.
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