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अनुवादक-बालब्रह्मवारी मुनि श्री अम लक ऋषिनी 84
एवं गंधणिन्बत्ती दुविहा जाव वेमाणियाणं रसणिन्वत्ती पंचविहा जाव वेमाणियाणं फासणिवत्ती अट्टविहा जाब वेमाणियाणं ॥ ५ ॥ कइविहाणं भंते ! संठाण णिवत्ती प.? गोयमा ! छव्विहा संठाणणिब्वत्ती पं० तंजहा-समचउरंस संठाणणिव्यत्ती जाव
A२४१२ हुंड संठाणणिवत्ती ॥ णेरइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! एगा हुडसंठाणणिव्वत्तीं पं० ॥ असुरकुमाराणं पुच्छा ? गोयमा ! एगा समचउरंस संठाणणिवत्ती, एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढवीकाइयाणं पुच्छा ? गोयमा एगा मसूरचंदसंठाणणिवत्ती पं.
एवं जस्स जं संठाणं जाव वेमाणिया ॥ १० ॥ कहविहाणं भंते ! सण्णाणिवत्ती भिगंध ऐसी दो प्रकार की गंध निर्वृत्ति वैमानिक पर्यंत कहना. पांच प्रकार की रस निर्वृत्ति व आठ स्पर्श निर्वृति भी वैमानिक पर्यंत जानना ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! मंठाण निर्वृत्ति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! संठान निवृत्ति के छ भेद कहे हैं ? समचतुस्रसंठान यावत् हुंडक संस्थान निवृत्ति. नारकी की पृच्छा, एक हुंडक संस्थान निवृत्ति अमुरकुमार यावत् स्तनितकुमार को एक समचतुस्र संस्थान निर्वृत्ति. पृथ्वी काया का संस्थान चंद्रमसुर का. ऐसे ही जिस को जितने संस्थान होवे उम को उतनी संस्थान निवृत्ति कहना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! संज्ञा निवृत्ति के कितने भेद कहे हैं ?
*काशेक राजावहंदुर लाला मुखदेवसहायनी ज्यालाप्रसादजी *
भावाथे