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पंचमान विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 488+
दियवजं जस्स जा भासा जाव वेमाणियाणं ॥ ७॥ कइविहाणं भंते ! मणणिवत्ती प.? गोयमा ! चउविहा मणणिवत्ती प.सच्चमणणिवत्ती जाव असच्चामोस मणणिवत्ती ॥ एवं एगिंदियवजं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं ॥ ७ ॥ कइविहाणं भंते ! कसायणिवत्ती पं० ? गोयमा! चउन्विहा कसायणिवत्ती पं० तंजहा-कोहकसायणिवत्ती जाव लोभकसाय णिवत्ती ॥ एवं जाव वेमाणियाणं ॥ ८ ॥ कइविहाणं भंते ! वण्णणिवत्ती पं.? गोयमा ! पंचविहा वण्णणिव्यत्ती पं० तंजहा
काल वण्णणिन्वची जाव सुकिल्ल वण्णणिन्वत्ती, एवं णिरवसेसं जाव वेमाणियाणं ॥ एकन्द्रिय में भाषा नहीं है, ॥७॥ अहो भगवन् ! मननिर्वृति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतमः! मननिर्वृति के चार भेद कहे हैं. सत्य मननिर्वृति यावत् असत्यमृषा मननिवृत्ति. ऐसे ही एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय छोडकर वैमानिक पर्यंत जानना. ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! कितनी कषाय निर्वृत्ति कही ? अहो गौतम ! चार कषाय निवृत्ति कही. क्रोध कषाय निर्वृत्ति यावत् लोभ कषाय निर्वृत्ति ऐसे ही वैमानिक तक कहना ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! कितनी वर्णनिर्वृत्ति कहीं ? अहो गौतम ! पांच वर्ण निर्वृत्ति कही. काला वर्ण यावत् शुक्ल वर्ण निवृत्ति. ऐसे वैमानिक पर्यंत सब को पांच निवृत्ति जानना. ऐसे ही सरमिगंध व दुरः
488+ उत्रिसवा शतक का आउवा उद्देशा 498*
भावार्थ
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