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बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
काइयए एगिदिय जीवणिवत्ती, जाव वणस्सइकाइयए एगिदिय जीवणिवत्ती ॥२॥ पुढवी काइय एगिदिय जीवणिवित्तीणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पत्ता , तंजहा-सहुमपुढवीकाइयएभिदिय जीव णिवत्तीय, बादर पुढवी काइय एगिदियजीवणिवत्तीय ॥ एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा बडुगबंधे तेयग सरीरस्स जाव सन्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय कप्पातीत वेमाणिय देव पंचिंदिय जीवणिवत्तीणं भंते! कइविहापण्णत्ता,गोयमा! दुविहा पण्णत्तातंजहा पजत्तग सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइयजात्र
दवपंचिंदिय जीवणिवत्तीय, अपजत्तगसब्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदिय जीव भेद कहे हैं पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीव निर्वृत्ति ॥२॥ पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव निर्वृत्ति के कितने भेद कहे हैं. ? अहो गौतम ! पृथ्वी कायिक एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति के दो भेद कहे हैं सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव निर्वृत्ति बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव निर्वृति यों इस अभिलाप मे जैसे बडे बंधका कथन आठवे शतक के नववे उद्देशे में कहा वैसे ही ते नम सरीर का यावत् सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपपातिककल्पातीसवैमानिकदेवपंचेन्द्रिय जीव निर्वत्ति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! दो भेद कहे हैं ? पर्याप्त सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपपातिक यावत् पवेन्द्रिय देव निवृत्ति और २ अपर्याप्त सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपपातिक यावत् देव पंचेन्द्रिय जीव निवृत्ति है।
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
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