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गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ तेणं भंते! किंमया पण्णत्ता? गोयमा ! सव्वरयणामया अच्छा, सेसं तंचव, एवं जाव अणुत्तरविमाणा णवरं जाणियन्वा जत्थ जत्तिया भवणा विमाणावास सेवं भंतेत्ति ॥ एगूणवीसइमस्स सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १९॥ ७॥ . . कइविहाणं भंते ! जीवणिवत्ती पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा जीवणिवत्ती पण्णत्ता तंजहा-एगिदिय जीव णिवत्ती जाव पंचिंदिय जीव णिवत्ती ॥ १॥ एगिदिय जीव
ण्णिव्वत्तीणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-पुढवी भावार्थ
अहो गौतम ! सौधर्म देवलोक में बत्तीस लाख विमान कहे हैं. वे सब रत्नों के घने हुवे हैं. ऐसे ही अनु। हत्तर विमान तक कहना परंतु जिन को जितने विमान होवे उन को उतने जानना. अहो भगवन् ! आपके
वचन सत्य हैं. यह उन्नीसवा शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १९ ॥ ॥ . है सातवे उद्देशे में देवता का कथन किया. निवृत्तिवंत देवता होते हैं इसलिये आगे निवृत्ति का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! जीव निवृत्ति ( उत्पन्न होना) के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम !* जीव निवृत्ति के पांच भेद कहे हैं. एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय जीव निर्वृत्ति. ॥१॥ अहो भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! एकेन्द्रिय जीव निवृत्ति के पांच |
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
84 उनीसवा शतक का आठवा उद्देशा 8748