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सूत्र
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ |
एवं एवं महं पुढवीकाइयं जतुगोलासमाणं गहाय पडिसाहरिय पडिसाहरियत्ता, पडिसंखिय पडिसंखियत्ता जाव इणामेवत्ति कट्टु तिसत्तखुत्तो उपसिज्जा, तत्थणं गोयमा ! अत्थेगइया पुढवीकइया आलडा, अत्थेगइया णो आलद्धा, अत्थेगइया संघहिया, अगइया णो संघट्टिया अत्थेगइया परियाविया, अत्थेगइया णो परियाविया, अत्थे गइया उद्दविया, अत्थेगइया णो उद्दविया, अत्थेगइया पिट्ठा अत्थेगइया णो पिट्ठा, पुढवाकाइयस्सणं गोयमा ! ए महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ॥ २० ॥ पुढची काइस्सणं भंते! अकंते समाणे केरिसयं वेदणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरइ ? गोयमा ! पीसकर एकत्रितकरे, पिण्डबनाकर पीसेयों इक्कीस वरूतपीसे. वहां तक अहो गौतम ! उस लाखके गोले जितने पृथ्वी कायिक में से कितनेक जीवोंने उस शिलाका व पीसने के पत्थर का स्पर्शकिया और कितनेक जीवोंने नहीं भी । किया कितनेक जीवोंको संघट्टन हुवा, कितनेक जीवों को संघट्टन नहीं हुवा, कितनेक जीव परितापना पाये, कितनेक नहीं पाये, कितनेक जीवों को उपद्रव हुवा, कितनेक को नहीं हुवा, कितनेक जीव पीसाये और } कितनेक नहीं पीसाये. अहो गौतम ! पृथ्वी कायिक जीव के शरीर की इतनी अवगाहना कही है, अर्थात् | वह बहुत ही सूक्ष्म है ॥ २० ॥ अहो भगवन् ! पृथ्वीकाया को अपक्रमण करनेसे उसके जीवों कैसी वेदना वेदते हैं ?
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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