________________
438
488 पंचांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) सूत्र +8+
से जहाणामए केइ पुरिसे तरुणं बलवं जाव णिपुणसिप्पोबगए, एगं पुरिसं जुण्णं जजरियदेहं दुव्वलं किलंतं जमलपाणिणा मुद्दाणंसि जभिहणिज्जा, सेणं गोयमा ! पुरिसे तेणं पुरिसेणं अमलपाणिणो मुद्धाणंसि अभिहणए समाणे केरिसयं वेदणं पञ्चणुब्भवमाणे विहरइ ? अणिटुं समणाउसो! तस्सणं गोयमा ! पुरिसस्स वेदणाहिंतो पुढवीकाइए अकंते समाणे एतो अणि?तरियंचेव अक्ततरियंचेव जाव अमणामतरियंचेव वेदणं पच्चणुब्भवमाणे विहरति ॥ २१ ॥ आउयाएणं भंते ! संघटिए समाणे केरिसयं वेदणं पच्चणुब्भवमाणे विहरति ? गोयमा ! जहा पुढवी
काइए एवं आउकाएवि, एवं तेउकाएवि, एवं वाउकाएवि, जाव विहरइ ।। सेवं भंते है ?अहो गौतम ! जैसे कोई तरुण, बलवंत यावत् सब शिल्पोंमें निपुण ऐसा पुरुष किसी एक जरावरोग से जर्जरित देहवाला, बल रहित पुरुष के मस्तक में प्रहार करे. अहो गौतम ! उसे कैसी वेदना होवे ? अहो भगवन् ! उसे अनिष्ट बेदना होवे. वैसेही अहो गौतम! आक्रांत की ईई पृथ्वी काया उक्त पुरुषकी वेदनासे, अनिष्टतर व अक्रांततर यावत् अपनामतर वेदना वेदते हुवे विचरते हैं ॥ २१॥ अहो भगवन् ! अप्काया को संघर्षण होते वे कैसी वेदना वेदते हैं ? अहो गौतम ! जैसे पथ्वी काया वेदना वेदते हैं वैसे ही अप-३
उनीसवा शतक का तीसरा उद्देशा 426
भावार्थ
Amwww