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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
चार ॥ ३ ॥ स० सातवा उ० आकाशांतर किं. क्या ग. गुरु ल. लघु ग. गुरुलघु अ० अगुरुलघु गो० गौतम नो नहीं गुरु नो नहीं लघु नो० नहीं गुरुलघु अ० अगुरुलघु स. सातवा त० ननुवात कि क्या गो० गौतम नो० नहीं गुरु नो० नहीं लघु ग० गुरुलघु नो० नहीं अगुरुलघु ए. ऐसे म.सातवा घ. घनवात स० सातवा घ० घनोदधि स० सातवी पु. पृथ्वी उ० आकाशांतर स० सर्व ज. जैसे स०
वीईवयंति,पसत्था चत्तारि अपसत्था चत्तारि॥३॥सत्तमेणं भंते: उवासंतरेकिंगरुए,लहए, गरुय लहुए, अगुरुय लहुए ? गोयमा ! नोगरुए, नोलहुए, नो गरुय लहुए, अगरुय लहुए सत्तमेणं भंते ! तणुवाए किं गरुए, लहुए, गरुयलहुए, अगरुयलहुए।
गोयमा ! नोगरुए, नोलहुए, गरुय लहुए, नो अगरुय लहुए एवं सत्तमे नहीं करना ये चार बोल अप्रशस्त कहाये गये हैं ॥३॥ जीव के गुरुत्व लघुत्व से आकाशादिक का गुरुत्व लघुत्व कहते हैं. १ अहो भगवन् ! सातवी नरककी नीचेका आकाशान्तर क्या गुरुत्व, लघुत्व, गुरुलघुत्व, व अगुरुलघुत्ववाला है ? अहो गौतम ! सातवी नरक का आकाशान्तर गुरु, लघु व गुरुलघु नहीं है परंतु अगुरुलघु है. अहो भगवन् ! सातवीरक की नीचे का तनुवात क्या गुरु, लघु, गुरुलघम व अगुरुलघु है ? अहो गौतम ! सातवा तनुमात गुरु नहीं है, लघु नहीं है परंतु गुरु लघु है और अगुरु लघु नहीं है. ऐसे ही साता घनवात, सातवा घनोदधि, सातवी पृथ्वी व तव आकाशान्तर को सातवा
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी पालाप्रसादजी*
भावार्थ