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शब्दर्थ
सूत्र
भावार्थ
4 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र 43
जा० यावत् मिथ्यादर्शन शल्य के वे० निवर्तने से ए० ऐसे ख० निश्चय गो० गौतम जी० जीव ल० लघुत्व | को आ० आते हैं ॥ २ ॥ ए० ऐसे सं० संसार आ० बहुत क० करे प० थोडा क० करे दी० दीर्घ क० करे ह० छोटा क० करे अ० वारंवार भ्रमण करे वी० तीरे प० प्रशस्त च० चार अ० अप्रशस्त च०
गोयमा
! पाणाइवायवेरमणणं जात्र मिच्छादंसणसल्ल वेरमणेणं एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छति ॥ २ ॥ एवं संसार आउली करेंति, परिती करेंति, दीही करेंति, हस्सी करेंति, एवं अणुपरियहंति,
एवं
एवं
अवर्णवाद बोलना १७ माया मृषा और १८ मिथ्यादर्शन शल्य- देवगुरु धर्म से भी मन का मिध्यात्व नाश नहीं होवे, इन अठारह कारनों से जीव अधोगति गमनरूप गुरुत्व धारण करता है ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! जीव लघुत्व कैसे धारण करता है ? अहो गौतम ! प्राणातिपात से निवर्तना यावत् मिथ्या {दर्शन शल्य से निवर्तना इन अठारह कारनों से जीव लघुत्व प्राप्त कर सकता है ॥ २ ॥ उक्त अठारह संसार परत करे, दीर्घ करे, ह्रस्व करे, संसार में इन आठ में से लघुत्व, परित्त, हस्वत्व व संसार का उल्लंघन ऐसे चार बोल प्रशस्त और गुरुत्व, संसार का प्रचूर करना, दीर्घ करना व संसार का उल्लंघन
पाप स्थानों के आचारण से जीव संसार प्रचुर करे, वारंवार परिभ्रमण करे और संसार से उत्तीर्ण होवे.
पहिला शतक का नववा उद्देशा
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