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शब्दार्थ उत्थान जा. यावत् प० पराक्रम ते वे ने नारकील. लब्धिवीर्य से मर सवीर्य क. करणवीर्य से
अ. अवीर्य से वह ते. इसलिये ज. जैस ने नारकी जा० यावत् प० पंचेन्द्रिय ति. तिथंच म मनुष्य ज. जैसे ओ० औधिक जीव न० विशेष सि.सिद्ध व० वर्जना भा० कहना वा० बाणव्यंतर जो. ज्यातिपी वे वैमानिक ज. जैसे ने नारकी से• वह ए. ऐसे भं भगवन् ॥ १ ॥८॥
वि सवीरिया । जेसिणं नेरइयाणं नत्थि उट्ठाणे जाव परकमे लेणं नेरइया लाईवी. रिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया । से तेणटेणं जहा नेरइया एवं जाव पंचिं. दिय तिरिक्ख जोणिया । मणूसा जहा ओहिया जीवा नवरं सिद्ध वजा भाणियब्वा । वाणमंतर जोइस वेमाणिया जहा नेरइया ॥ सेवं भंते २ त्ति ॥ पढमेसए अट्ठभो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ ८ ॥
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* भावार्थ वीर्य से वीर्य सहित हैं परंतु:करण वीर्य से वीर्य रहित हैं इस लिये अहो गौतम ! ऐसा कहागया
कि नारकी के जीव वीर्य सहित व वीर्य रहित है. जैसा नारकी का कहा वैसे ही मनुष्य छोडकर अन्य 60 ईसब दंडक का कहना मनुष्य का समुच्चय जीव जैसे कहना परंतु समुच्चय जीव के दंडक में सिद्ध है यह
यहां नहीं कहना अहो भगवन् ! आपने जो कहा व सत्य है यह पहिला शतकका आठवाई उद्देशा पूर्ण हुवा ॥१॥८॥
9-43 पंचमांग विवाह पण्णात्ति (भगवती) मूत्र
- पहिला शतकका आठवा उद्देशा 986080
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