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सत्र
488
समणोवासगाणं भवसि, जेणं नुमं एयमटुं णजाणइ णपासइ ? तएणं मंडुए समणोवासए ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-अत्थिणं आउसो ! वाउयाए वाति ? हंता मंडुया ! वाति ॥ तुब्भेणं आउसो वाउयस्स वायमाणस्स रूवं पासह ? णो इणढे समटे ॥ अत्थिणं आउसो ! घाणसहगया पोग्गला ? हंता अत्थि, तुब्भेणं आउसो! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रूवं पासह ? णो इणटे समढे ॥ अत्थिणं आउसो ! अरणिसहगए अगणिकाए ? हंता अस्थि । तुब्भेणं आउसो ! अरणिसहगयस्स
अगणिकायस्स रूवं पासह ! णो इणट्टे समंढे ॥ अत्थिणं आउसो समुदस्स IF मंडुक श्रमणोपासक उन अन्यतीर्थिकों को ऐसा बोले कि अहो आयुष्मन् ! क्या वायु चलता है ? हां में भावार्थ
मंडुक वाय चलता है, अहो आयुष्मन् ! तुम चलते हुवे वाय का रूप क्या देखते हो ? अहो मंडुक ! हम चलते हुवें वायु का रूप नहीं देखते हैं. घाणमहगत पुद्गलों हैं क्या ? हां मंडुक ! प्राणसहगत - पुद्गलों हैं. अहो आयुष्मन् ! क्या तुम घ्राणसहगत पुद्गलों का रूप देखते हो ? यह अर्थ योग्य नहीं: हैं अर्थात् घ्राणसहगत पदलों का रूप हम नहीं देखते हैं. अहो आयुष्मन् ! क्या अरणि सहगत अग्नि है ? हां मंडक! अरणिसहगत अग्निकाय है. अहो आयुष्मन ! तुम क्या अरणि सहगत अग्नि-1
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 1882
अठारहवा शतक का सातवा उद्देशा
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