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________________ - विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र समणोवासए इमीसे कहाए लढे समाणे हट्ठतुढे जाव हियए ण्हाए जाव सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता, पातविहारचारेणं रायगिहं णयरं जाव णिग्गच्छइ, णिग्गच्छइत्ता, तेसिं अण्णउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वाईवयति ॥ १३ ॥ तएणं से अण्णउत्थिया मंडुयं समणोवासयं अदूरसामंते वीईवयमाणं पासइ, पासइत्ता अण्णमण्णं सदाति २ त्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमा कहा अविउप्पकडा इमंचणं मछुए समणोवासए अम्हं अदूरसामंतेणं ग्राम विचरते यावत् पधारे परिषदा यावत् पर्युपासना करने लगी ॥१२॥ मंडुक श्रमणोपासकने जब यह बात मुनी तब वह हर्षित हुवा, तुष्ट हुवा यावत् स्नान किया यावत् अलंकृत शरीरवाला हुवा और अपने गृह से नीकलकर पांव से चलता हुवा राजगृह से यावत्नीकलकर उन अन्य तीथिकों की पास से जाताथा ॥१३॥ तब वे अन्यतीर्थिक मंडुक श्रमणोपासक को पास में जाता हुवा देखकर परस्पर ऐसा बोलने लगे कि अहो देवानुप्रिय :20 अपन को यह बात समझ में नहीं आती है और यह मंडुक श्रमणोपासक नजीक में जा रहा है इस.से अहो देवानुप्रिय ! मंडुक श्रमणोपासक को यह बात पूछना अपन को श्रेय है. ऐसा करके परस्पर बात सुनकर मंडुक श्रमणोपासक की पास गये और उन से ऐसा बोले-अहो मंडुक ! तेरे धर्माचार्य धमापद-17 36+ अठारहवा शतक का सातवा उद्देशा 988 भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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