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4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जणवयविहारं विहरइ ॥ ८ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णाम णयरे : गुणसिलए चेइए, वण्णओ जाव पुढवीसिलापट्टओ ॥ ९ ॥ तस्सणं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते वहवे अण्णउत्थिया परिवसंति, तंजहा-कालोदाई, सेलोदाई, एवं जहा सत्तमसए अण्णउत्थिउद्देसए जाव से कहमेयं मण्णे एवं ? ॥ १० ॥ तत्थणं रायगिहे णयरे मखएणाम समणावासए परिवसइ, अड्डे जाव अपरिभूए अभिगय जाव विहरइ ॥ ११ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाई पुव्वाणु
पुचि चरमाणे जाव समोसढे, परिसा जाव पज्जुवासइ ॥ १२ ॥ तएणं मड्डए श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी बाहिर जनपद देश में विहार करने लगे ॥ ८ ॥ उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था, उस की ईशान कौन में गुणशील नामक उद्यान थाई यावत् पृथ्वीशीला पट्ट था ॥९॥ उस गुणशील उद्यान की पास बहुत अन्यतीर्थिक रहते थे. जिन के नाम. कालोदायी, शैलोदायी वगैरह जैसे सातवे शतक में अन्यतीर्थिक उद्देशों कहा है तैसेही यहां कहना. तो अहो भगवन् ! यह किस तरह है ?॥१०॥ उस राजगृह नगर में मंडुक नामक श्रमणोपासक ऋद्धिवंत यावत् अपराभूत रहता था ॥ ११ ॥ उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पूर्वानुपूर्व चलते, ग्रामानु-*
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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