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शब्दार्थ
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पण्णत्ति ( भगवती) पंचमांग विवाह
ते वे दु. दोप्रकार के से: निश्चल आत्मा वाले अनिश्चल आत्या रहित त. तहां जे० नो से० शैलेशी युक्त ते येल लब्धिवीर्य से स० सवार्य करणार्थि से अ. अवीर्य त० तहां जे० जो अ०० अशैलशीयुक्त ते. वेल. लब्धिवीर्य से स. सवीर्य क. करणवीर्य मे स. सवीर्य अ. अवीर्य से.
तत्थणं जे ते असंसार समावण्णगा तेणं सिद्धा, सिद्धाणं अवीरिया तत्थणं जे ते संसार समावण्णगा ते दविहा पण्णत्ता तंजहा सेलेसि पडिवण्णगाय, असेलेसि पडिवण्णगाय । तत्थणं जे ते सेलसि पडिवण्णगा तेणं लाईवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया । तत्थणं जे ते असेलेसि पडिवण्णगा, तेणं ल. द्विवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं सवीरियावि अवीरियावि. सेतेणट्रेणं गोयमा अभाव है इसलिये वे वीर्य रहित हैं और जो संसार समापनक हैं उन के दो भेद कहे हैं. शैलेशी प्रतिपन्न सो चउदहवे गुणस्थानवर्ती अयोगी केवली के जीव और २ अशैलेशी सो प्रथम गुणस्थान से तेरहवे गुणस्थानवी जीव. उस में चउदहवे गुणस्थानवर्ती शौलेशी जीव लब्धि वीर्य की अपेक्षा से वीर्य सहित और करण वीर्य की अपेक्षा से वीर्य रहित हैं. प्रथम गुणस्थान से तेरहवे गुणस्थानवर्ती अशैलेशी प्रतिपन्न जीव लब्धि वीर्य से वीर्य सहित हैं और करण वीर्य से वीर्य सहित व वीर्य रहित हैं. इस कारन से अहो।
१वीयाँतराय के क्षय से जो वीर्य होता है सो लब्धिवीर्य २ उत्थानादि क्रिया सो करण वीर्य.
पहिला शतक का आठवा उद्देशा 8
भावार्थ
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