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________________ शब्दाथे सुत्र नुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी से वह पु० पुरुष प० पराजित है से वह ते. इसलिये गोप मा कल कहा जाता है। स० वीर्यवन्त प० जीतता है अ० वीयरहित प. पराजय पामता है ॥२॥ जी०जीव भं० भगवन कि क्या स. सवीर्य अ० अवीर्य गो. गौतम स. सवीर्य अ अवीर्य से वह के. कैसे भं०भगवन् ए०ऐसा चु. कहा जाता है गो गौतम जी० जीव द० दोपकार के सं० संसार को प्राप्त अ. संमार से रहित त. तहां जे. जो अ० संसार रहित ते वे सि. सिद्ध मि० सिद्ध अ० अवीर्य त० तहां जे. जो सं० संसारो जाव उदिण्णाई नो उवसंताई भवति सेणं परिसे पराइजइ, से तेणट्रेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सवीरिए पराइणइ, अबीरिए पराइज्जइ ॥ ९ ॥ जीराणं भंते किं सवारिया अवीरिया ? गोयमा ! सवीरियावि, अवीरियावि । से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ ? . गोयमा : जीग दुविहा पण्णत्ता तंजहा संसारसमावण्णगाय असंसारसमावण्णगाय । होता है. इसलिये ऐसा कहागया है कि वीर्यवंत पुरुष का जय और वीर्य राहत पुरुप का पराजय होता है ॥ २ ॥ अव वीर्य का प्रश्न करते हैं. अहो अगवन् ? जीव क्या वीर्य सहित है या वीर्य रहित है ? अहो गौतम ? वीर्य सहित भी है और वीर्य रहित भी है. अहो भगवन ! जीव वीर्य सहित भी है और वीर्य रहित भी है यह किस तरह से ! अहो गौतम ? जीव के दो भेद कहे हैं. मंसार समाज पन्नक और असंसार समापन्नक. जो अमंमार ममापनक है वे सिद्ध कराने हैं. उन को करण वीर्य का * पकाशक-राजावहादरलाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रमादजी* भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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