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________________ शब्दार्थ ११५० पराजयपामे से वह क० कैसे भं• भगवन ए. ऐसे गो० गौतम स० वीर्यवन्त प० जीते. अ० अवी ० यवन्त ५०पराजयपामे वीवीर्य व०वधयोग्य क० कर्म नो नहीं ब बंधे नो नहीं पु० स्पर्शे जा. यावत् नो० नहीं अ० सन्मुख हवे णो नहीं उ• उदयआये उ० उपशान्तपामे से वह प० जीतता है ज० जीस का वी० वीर्य व० वयोग्य क• कर्म ब० बंधे जा० यावत् उ० उदयआये नो० नहीं उ० उपशमें भ० हैं। एवं गोयमा ! सीरिए पराइणइ,अवीरिए पराइज्जइ । से केणटेणं जाव पराइज्जइ ? गोयमा ! जस्सणं वीरियवज्झाई कम्माइं गोबद्धाइं णो पुट्ठाई जाव नो अभिसमण्णागयाइं,, णो उदिण्णाइं वसंताई भवंति, सेणं पराइणइ. जस्सणं बीरियवज्झाई कम्माई बधाई भावार्थ करणवाले दो पुरुष परस्पर संग्राम करे; उस में से एक पुरुष का जय होवे और दूसरा पुरुष का पराजय होवे. अहो भगवन् ! इस तरह जय पराजय होनेका क्या कारन? अहो गौतम ।। वीर्यवंन पुरुष का जय हुवा और वीर्य रहित पुरुष का पराजय हुवा. अहो भगवन्त ! वीर्यवन्त पुरुष का जय और वीर्य रहित पुरुष का पराजय होने का क्या कारन ? अहो गौतम ! वार्य की बात करनेवाले कर्म पुगलों १० का बंध जिसने नहीं किया होवे, जिन को नहीं स्पर्श होवे, यावत् उदय में नहीं आये होवे वैसे ही उदी रणा से उदय में नहीं लाये होवे परंतु उपशान्त रहे हुवे होवे, उस को जय होता है और जिस पुरुषको वीर्य 1की घात करनेवाले कर्म पुद्गलों बंधे हुवे होवे यावत् उदीरणा से उत्थानादि ये होवे उस पुरुष का पराजय है। विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 488 पंचमाङ्ग पहिला शतक का आठवा उद्देशा १०१-१३ 48
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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