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________________ शब्दाथशक्तिम स सांध स० स्वतः के पा० हस्त से अ. असिसे सी. शीर्ष छि• छंद ना० तब में उम पु. पुरुष को का० कायिकी जा. यावत् पा० प्राणातिपातिकी पं० पांच कि क्रिया पु० स्पर्श आ. नजदीक व. वध करने वाला अ० आकांक्षा रहित पु० पुरुषवर से प० स्पर्शा ॥ ८ दो दो भं०भगवन पु० पुरुष स० सरिखे स. सरिखी त्वचावाले स० सरिखी वयवाले स. सरिखे भर भंडोपकरणवाले अ० अन्योन्य स. साथ मं• संग्राम सं० करे त. तहां ए. एक पु० परुष ५० जीते ए. एक पुल पुरुप रिए ? गोयमा ! जावंचणं से परिसे तं परिसं सत्तीए समभिसंधेइ सयपाणिणावा से असिणा सीसं छिंदइ तावंचणं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवाए पंचहिकिरियाहि । पुढे । आसण्ण बहएणय अणवकंखवत्तीएणं पुरिसरे रेणं पुंटे ॥ ॥ दो भंते ! . पुरिसा सरिसया. सरित्तया, सरिसव्वया, सरिसमंडभत्तोवगरणा अण्णमण्णणं सहि.. संगामं संगामेइ, तत्थणं एगे पुरिसे पराइणइ, एगे पुरिसे पराइजइ, से कहमेयं भंते! भावार्थअहो यगान् ! उम पुरुप को कितनी क्रियाओं लगती हैं. ? अहो गौतम : जितने कालनक यह पुरुप किसी अन्य पुरुष का शक्ति या वङ्गमे शीर्प का छदन करता है उतनाकाल तक उम पुरूप को कायिकीपादि। पांमाओं लगनी. आसम वधक पाप की निवृत्ति के लिये निरपेक्ष वृत्ति से वैर का बंधन करता है. ॥ ८ ॥ अहो भगवन ! शरीर के प्रमाण में व कुशलना में मरिग्वे. भगवी वयवाले. मगग्वे भंडार अनुवादक-बालब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायनी मालाप्रसादजी
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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