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49 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमी
णेरइयत्ताए उववण्णा तत्क्षणं एगे पेरइए महाकम्मतराएगेव महावेयणतरा चैव, एगे णेरइए अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! णेरइया ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा मायीमिच्छट्ठिी उववण्णगाय, अमायी सम्मट्ठिीउववण्णगाय, तत्थणं जे से मायीमिच्छट्ठिी उववण्णए णेरइए सेणं महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव, तत्थणं जे से अमायीसम्महि । उववण्णए णेरइए सेणं अप्पकम्मतराए चेव अप्पवेयणतराए चेव ॥ ३ ॥ दो भंते !
असुरकुमारा एवं चेव ॥ एवं एगिदिय विगलिंदयवजं जाव वेमाणिया ॥४॥णेरइयाणं भगवन् ! एक ही नरकावास में दो नेरइये नारकीपने उत्पन्न हुवे, जिन में एक नारकी महाकर्मवाला यावत् महावेदनावाला, दूसरा नारकी अल्पकर्मवाला यावत् अल्पवेदनावाला है तो यह किस तरह है ? अहो गौतम ! नारकी के दो भेद कहे हैं. १ मायी पिथ्यादृष्टि उत्पन्नक और २ अमायीसमदृष्टि उत्पक. उन में जो मायीमिथ्यादृष्टि उत्पन्नक नारकी है वह महाकर्मवाला यावत् महावेदनावाला है और जो अमायी सम्यग् दृष्टि उत्पन्नक नारकी है वह अल्प कर्मवाला यावत् अल्प वेदनावाला है ॥ ३॥ ऐसे ही असुरकुमार यावत् एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय छोडकर सब दंडक का जानना ॥ ४ ॥ अहो
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
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