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सत्र
२३२८
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
कलिओगा एवं जाव चरिंदिया, सेसा एगिदिया जहा वेइंदिया पंचिदिय तिरिक्ख जोणिया जाव वेमाणिया जहा णेरइया, सिद्धा जहा वणस्सइकाइया ॥ ४ ॥ इत्थीओणं भंते ! किं कडजुम्माओ पुच्छा, गोयमा ! जहण्णपदे कडजुम्माओ, उक्कोसपदे कडजुम्माओ, अजहण्णमणुकोसपदे सिय कडजुम्माओ जाव सियकलिओ गाओ, एवं असुरकुमारइत्थीओवि जाव थणियकुमार इत्थीओवि । एवं तिरिक्ख.
जोणियइत्थीओवि । एवं मणुस्सइत्थीओवि । एवं वाणमंतर जोइसिय वेमाणिय उस का परियाग किये बिना अनियत रूप होने से जघन्य व उत्कृष्ट पद में किसी का B संभव नहीं है. मध्यम पद में स्यात् कृत युग्म यावत् स्यात् कलि युग्म. बेइन्द्रिय से चतुरेन्द्रिय के है जघन्य पद में कृत युग्म, उत्कृष्ट पद में द्वापर युग्म, अजघन्य अनुत्कर्ष पद में क्वचित् कृत युग्म यावत्
क्वचित् कलियुग्म शेप सब एकेन्द्रिय का बेइन्द्रिय जैसे कहना. पंचेन्द्रिय तिर्यंच यावत् वैमानिक का नारकी जैसे कहना. सिद्ध का वनस्पति काया जैसे ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! स्त्रियों में क्या कृत युग्म है ? अहो गौतम ! जघन्य पद में कृत युग्म. मध्यम पद में स्यान् कृत युग्म यावत् स्यात् कलि युग्म. ऐसे ही असुरकुमार की स्त्रियों यावत् स्तनित कुमार की स्त्रियों, ऐसे ही तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यंतर,
प्रकाशक-राजाबहादर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ