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सूत्र
भावार्थ
46- पंचमाङ्ग विवाह पण्णाचे ( भगवती ) सूत्र 4
एवं इ-जात्र कलिओगे ४ ॥ ३ ॥ रइयाणं भंते ! किं कडजुम्मा तेयोगा दावरजुम्मा कलिओगा ? गोयमा ! जहण्णापद कडजुम्मा उक्कासपदे तेओगा, अजहणमणको पदे, पिय कलिओगा जाव थणियकुमारा ॥ ४ ॥ वास्तवकवपानं गळा ? जहणपदे उक्कोस दे अपदा अजहण्णमणुकोस जब कलिगा | इंद्रियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहण्णपदे कडजुम्भा, कोपदे दावरजम्या, अजहण्णमणुक्कोसपदे सिय कडजुम्मा जाव सिंय
चार का भाग देते शेष एक रहे उसे कलियुग्म कहते हैं. अहो गौतम ! इसलिये ऐसा कहा गया है। यावत् कलियुग्म है ॥ ३ ॥ अहो भगवन्! नारकी को क्या कृत युग्म है, त्रेता युग्म, द्वापर युग्म या कलि युग्म है ? अहो गौतम ! नारकी को जघन्य पद में कृत युग्म है उत्कृष्ट पद में त्रेता युग्म है और अजघन्य अनुत्क पद में क्वचित् कृतं युग्म यावत् क्वचित् कलियुग्म है. ऐसे ही अग्निकुमार तक कहना ॥ ४ ॥ (वनस्पति काया की पृच्छा ? अहो गौतम ! वनस्पति में जघन्य व उत्कृष्ट पद में चारों में से कोई भी युग्म नहीं पाते हैं क्यों कि जघन्य उत्कृष्ट पद नियत रूप में पाये जाते हैं. नरकादिक को कालांतर परंतु वनस्पति को कालांतर नहीं है, उस को परंपरा सिद्ध गमन से उस राशि के अनंतवना से
40* अठारहवा शतक का चौथा उद्देशा +
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