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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋपिजी ?
जुम्मा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि जम्मा पाणता तंजहा कड़जम्मे, तेयोगे, दावरजुम्मे, कलिओगे ॥ से केणट्रेणं भंते बचन-जाय कलिआग ? गायमा ! जंणं रासी चउक्केणं अबहारणं अहीरमाणे २ चपज्जवलिए सेतं कडजुम्म १, जेणं रासी चउक्कएणं अबहारेणं अवहीरमाण रातपज्जवभिए सेतं तेयोग२. जेणं रामी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे २ दुपज बास र सतं दारजुम्मे, जेणं गी चउक्क
एणं अवहारेणं अवहीरमाणे २ एगपजवसिए सेतं कलिओगे ४, से तण?ण गोयमः! लोभसे निर्जरे ॥ २॥ चार कपाय से चार का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! युग्म किनारे कहे हैं ? अहो गौतम ! युग्म के चार भेद कहे हैं ? कृत युग्म २ ना ३ द्वापर युग्म और ४ कलियुग्म * अहो भगवन् ! किस कारन में ऐसा कहा गया है यावत् कलियुग्म ? अहो गौतम ? जि : राशि को चार का भाग देते शेष चार रहे उमे कृत युग्म कहते हैं, जिन राशि को चार का भाग देने शेष तीन रहे उसे त्रेता युग्म कहते हैं, जिस राशि को चार का भाग इते शेष दो रहे उसे द्वापर कहते हैं, और जिस को
* यहां गणित परिभाषा में समराशिको युग्म कहा है ओर विषम राशिको ओज कहा है. इस में यद्यपि दो राशि युग्म पाच्य है और दोराशि ओजवाच्य है तद्यपि राशिकी विवक्षासे चारों ही युग्म कहाये गये हैं.
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ