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________________ 21 पंचांग विवाह- पण्णत्ति ( भगवती.) सब 48 मागंदियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पण्णत्ते, तंजहा-मूलपगडिबंधेय, उत्तरपगाडिबंधेय ॥ १५ ॥ जेरइयाणं भंते ! णाणावरणिजस कम्मस्स कइविहे भावबंधे पण्णत्ते ? मागंदियपुत्ता दुविहे भावबंधे पण्णत्ते तंजहा-मूलपगाडिबंधेय, उत्तर पगडिबंधेय ॥ एवं जाव वेमाणियाणं ॥ णाणावरणिज्जेणं जहा दंडओ भणिओ एवं जाव अंतराइयं भाणिययो ॥ १६ ॥ जीवाणं भंते ! पावे कम्मे जेय कडे जाव जेय कजिस्सइ अत्थिया तस्स केइ णाणत्ते ? हंता अस्थि ।। से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ जीवाणं पावे कम्मे जेय कडे. जाव जेय कजिस्सइ अस्थिया केइ णाणत्ते ? मागंदियपुत्ता! से जहा णामए केइपुरिसे धणु परामुसइ, परामुसइत्ता उसु परामुसइ २ त्ता ठाणं मूल प्रकृतिबंध ब उत्तर प्रकृतिबंध. ॥ १५ ॥ अहो भगवन् ! नारकी को ज्ञानावरणीय कर्म के कितने भाव , बंध कहे हैं ? अहो माकंदिय पुत्र ! दो भाव बंध कहे हैं ! मुलप्रकृतिबंधव उत्तर प्रकृति बंध. ऐसे ही वैमानिक इपर्यंत जानना. जैसे ज्ञानावरणीय का दंडक कहा वैसे ही अंतराय तक का दंडक कहना. ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! जिन जीवोंने पापकर्म किये हैं और जो जीवों पापकर्म करेंगे उस में क्या भिन्नता है ? हां, माकंदियपुत्र ! उस में भिन्नता है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कि जिन जीवोंने पापकों wwwwwwwwwwwwwwwwwwanmannmanm RB0% अठारहवा शतक का तीसरा उद्देशा 4900 मावाथ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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