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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी .
वीरं वंदइ नमं नइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी अणगारस्सणं भंते! भावियप्पणी सव्वं कम्मं बेदमाणस्स र.व्वं कम्मं णिजरमाणस्स सव्वं मारं मरमाणस्स सव्वं सरीरं विप्पज्जहमाणस्स, चरिमं कम्मं वेदमाणस्स चरिमं कम्मं णिजरमाणस्स चरिमं मारं मरमाणस्स चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स मारणंतियकम्मं वेदमाणस्स मारणंतिय कम्मं णिज्जरमाणस्स मारणंतियमारं मरमाणस्स मारणंतिय सरीरं विप्पजहमाणस्स जे चरिमाणिज्जरा पोग्गला सुहुमाणं ते पोग्गला पण्णत्ता, समणाउसो ! सव्वं लोगंपिणं ते उग्गाहित्ताणं चिटुंति ? हंता मागंदियपुत्ता ! अणगारस्सणं भावियप्पणी जाव
उग्गाहित्तःणं चिटुंति ॥ ७ ॥ छउमत्थेणं भंते ! मणुस्से तेसिं णिज्जरापोग्गलाणं भगवं. महावीर को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोल कि सब कर्म वदते हुवे, सब कर्म निर्जरते हुवे, सब मार ( आयुष्य कर्म के पुद्गलों ) दूर करते हुवे और मब शरीर छोडते हुवे, चरिम कर्म वेदते हुवे, चरिम क रत हुने, चग्मि आयुष्य कर्म का क्षय करते हुवे, चारिम शरीर छोडते हुवे, मारणांतिक कर्म वेदते
म. जाति क रित हुन, पारणांति . आयुष्य कर्म का क्षय करते हुवे व मारणांतिक शरीर छोडते | हुवे भावितात्मा अन्गार को जो चरिम सूक्ष्म पुद्गल प्ररूपे हुवे हैं वे सब लोक को अवगाह कर क्या है।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालाप्रमादजी
भावार्थ
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