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सुत्र
भवार्थ
4 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
पुढवीकाइए कण्हलेस्से हिंतो पुढव किाइएहिंतो जाव अंतं करेइ, एवं खलु अजो नीललेस्से पुढवीकाइए जब अंतंकरेइ, एवं काउलेस्सेवि जहा पुढवीकाइए जव अंतंकरे, एवं आकाइएवि, वणस्सइकाइएवि, सच्चेवणं एसमट्ठे, सेवं भंते! भंतेत्ति, समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति वंदइत्ता णमंसइत्ता जेणेव मार्गदिय पुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छति उवागच्छइत्ता मागंदियपुत्तं अणगारं वंदेति णमंसंति एयम सम्मं विणणं भुज्जो भुज्जो खार्मेति ॥ ६ ॥ एणं से मागंदियपुत्ते अणगारे उट्ठाए उट्ठेइ २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंइ, उत्रागच्छइत्ता समणं भगवं महाकृष्णलेश्यावाला पृथ्वीकायिक जीव कृष्णले श्यावाली पृथ्वी काया में से यावत् अंत करे ऐसे ही अहो आर्यो ! नीललेयावाला पृथ्वीकायिक जीव यावत् अंत करे. ऐसे कापोत लेश्यावाला पृथ्वी कायिक यावत् अंत करे ऐसे ही अपकाया का व वनस्पतिकाया का जानना. यह अर्थ सत्य है. अहो भगवन्!) आपके वचन सत्य हैं. श्रमण निर्ग्रथों श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर माकंदिय पुत्र अनगार की पास गये और उन को वंदना नमस्कार कर वारंवार विनय से खमाये ॥ ६ ॥ फीर माकंदिय पुत्र अनगार वहां से ऊठ कर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास गये और श्रमण
488+ अठारहवा शतक का तीसरा उदशा 4011
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