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सहस्सेणं साई अणगारे जाए, इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी ॥१५॥ तएणं से कत्तिए अणगारे मुणिसुव्वयस्स अरहओ तहारूवाणं थेराणं अंतियं सामाइयमाइयाइं चउद्दस पुब्वाइं अहिज्जइ २ त्ता बहई चउत्थ छट्ठम जाव अप्पाणं भावमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ २ त्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणंझासेइ २ ता सर्द्धि भत्ताइं अणसणाई छेदेइ, छेदेइत्ता आलोइय पडिक्कते जाब किच्चा, सोहम्म कप्प सोहम्मे वडिंसए विमाणे उबवाय सभाए देवसयाणिज्जास जाव सक्के देविदत्ताए उववण्णे ॥ १६ ॥ तएणं सक्के देविंदे
देवराया आहुणोववण्णे सेसं जहा गंगदत्तरस जाव अंतं काहिति णवरं ठिई प्रकार से अंगीकार किया और उनकी आज्ञा में वैसे जाने यावत् संयम पालने लगे । ॥ १४ ॥ फीर वह कार्तिक श्रृष्टी एक हजार आठ गुमास्ते सहित र्यासमिति वाले यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हवे ॥ १५ ॥ कार्तिक अनगार श्री मुनिसुव्रत अरिहंत के नथारूप - स्थविरों की पास से सामायिकादि चउदह पर्वका अध्ययन कर बहुत चतुर्थ भक्त छठ अठम यावत् स्वतः
को भावते बहुत प्रतिपूर्ण रहवर्ष की साधु की पर्याय पालकर एक माम की संलेखना से आत्मा को झोस या ककर साठ भक्त अनशन का छदनकर आलोचना प्रतिक्रमण महित काल के अवसर में कालकर सोधमा
देवलोक में सौधर्मावतंसक विमान में उपपात सभा में दवगैय्या में शक्र देवेन्द्रपने उत्पन्न हुए ॥ १६ ॥ IVतब अधुनोपपन्न शक्रदेवेन्द्र देवराजा गंगदत्त जैसे अंत करेंगे. उनकी स्थिति दो सागरोपम की कही. अहो ।
48 अनवांदक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसह
भावार्थ
जी ज्वालाप्रसादी