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* पंचमान विवाह पण्यत्ति ( भगवती ) सूत्र <spot>
अप्तणं पाणं खाइमं साइमं जहा गंगदत्तो जाव मित्तणाइ जाव परिजणेणं जे? पुत्तं णेगमसहस्सेणय समणुगम्ममाणमग्गे सविट्ठीए जावरवणं हत्थिणापुरंणयरं मज्झमज्झणं जहा गंगदत्तो जाव आलित्तणं भंते ! लोए पलित्तेणं भंते ! लोए आलित्तपलित्तेणं भंते ! लोए जाव आणुगामियत्ताए भविस्सइ ॥ इच्छामिणं भंते ! गमटेसहस्सेणं साई सयमेव पव्वावियं, मुंडावियं जाव माइक्खयं तएणं मुणिसुव्वए अरहा कत्तियं सेटुिं णेगम? सहस्सेणं सईि सयमेव पवावेइ जाव धम्ममातिक्खंति एवं देवाणुप्पियागंतव्वं एवं चिट्टियव्वं जाव संजमियव्वं ॥१३॥ तएणं से कत्तिए सेट्री णेगमट्टसहस्सेण सद्धिं मुष्णसुव्वयस्स अरहओ इमं एयारूवं धम्मियं उवदेसं सम्मं संपडिवजइ-तमाणाए
तहा गच्छइ जाव सजमइ ॥ १४ ॥ तएणं से कत्तिए सेट्ठी णेगमट्ठ मित्र ज्ञाति यावत् परिजन सहित ज्येष्ठ पुत्र व एक हजार आठ गुमास्ते मार्ग में चलते हुवे मब ऋद्धि व वादित्रों सहित हस्तिनापुर नगर की बीच में गंगदत्त जैसे यावत् अहो भगवन् ! यह लोक आलिप्त, पलिप्त, आलिप्त प्रलिप्त है यावत् अनुगामी होगा. अहो भगवन् ! एक हजार आठ गुमास्ते सहित मैं स्वमेय, प्रव्रजित होने, मुंडित होने, यावत् कहने को इच्छाता हूं तब मुनि सुव्रत अरिहंतने एक हजार आठ गुमास्ते सहित कार्तिक श्रेष्ठी को प्रव्रजित किया यावत् उपदेश दिया कि ऐसे बैठना एसे संयम पालना ॥ १३ ॥ फीर एक हजार आठ गुमास्ते सहित कार्तिक श्रेष्ठिने मुनिसुव्रत अरिहंत का ऐसा धार्मिक उपदेश सम्यक् ।।
अठारहवा शतक का दूसरा उद्दशा
भावार्थ