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दो सागरोवमाइं पण्णता ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ अट्ठारसमस्सविइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १८ ॥ २ ॥ .. तेणं कालेगं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था वण्णओ, गुणसिलए चेइए, । जाव परिसा पडिगया ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव अंतेवासी माकंदियपुत्ते अणगारे पगइभदए जहा मंडियपुत्ते जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-सेणूण भंते ! काउलेस्से पुढवीकाइए काउलेस्से हितो,
पंचमांगविवाह पण्णति (भगवती ) सूत्र
भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह अठारहवा शतक का दूसरा उद्देशापूर्ण हुवा ॥ १८ ॥२॥ 3 द्वितीय उद्देशे में कार्तिक शेठकी अंतक्रिया कही और तृतीय उद्देशे में भी अंतक्रियाका ही कथन करते हैं उस काल उस समय में राजगृह नगर था. वह वर्णन योग्य था. गुणशील उद्यान में भगवंत पधारे परिषदा. वंदन करने को आइ. धर्मकथा सुनकर पीछी गइ ॥ १ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर सामी के अंतेवाती प्रकृति भद्रिक यावत् प्रकृति विनीत वगरह जैसे मंडित पुत्र यावत् पर्युपासना करते हुवे ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! कापुत लेश्यावाला पृथ्वीकायिक जीव कापुत लेश्या. साली पृथ्वी काय में से अंतर रहित नीकल कर मनुष्य का शरीर प्राप्त करे, वहां सम्यक्त्व की प्राप्ति करे।
अठारहवा शतक का तीसरा उद्देशा 488
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