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________________ - a पंचांग विवाह पण्णति (भगवती ) सूत्र 42-403 पुरंदरे एवं जहा जहा सोलसमसए विइय उद्देसए तहेव दिव्वणं जाणविमाणेण आगओं णवरं एत्थं आभिओगावि अत्थि जाव बत्तीसइविहं नविहं उवदंसेइ, उवदंसेइत्ता जाव पडिगए॥२॥भंतोत्त भगवं गोयमे! समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी जहा तइय सए ईसाणस्स तहेव कूडागारसाला दिटुंतो तहेव, पुवभव पुम्छा जाव अभिसमण्णागया, गोयमादि ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे हस्थि गाउरे णामं णयरे होत्था वण्णओ, सहसंवणे उजाणे वण्णओ॥३॥तत्थणं हत्थिणाउरे धारन करनेवाला शक्र देवेन्द्र देवराजा जैसे सोलहवे शतक के दूसरे उद्देशे में वर्णन किया वैसे यान विमान व अया. विशप में यहां पर आभियोगिक देवों भी थे यावत् बत्तीसप्रकार के नाटक बतलाकर यावत् छा गया ॥२॥ भगवान गौतम श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को यावत ऐसा बोले अहो भगवन् ! वगैरह जैसे तीसरे शतक में ईशान का कथन वैसे ही कूगकारशाला के दृष्टांत से पूर्वभाव की पृच्छा-यावत् : प्राप्त हुवा. श्रमण भगवंत महावीरने गौतमादि श्रपण निर्ग्रयों को कहा कि अहो गौतम ! उस काल उस समय में का इस जम्बूद्वीप के भरन क्षेत्र में हस्तिनापुर नमर था. वह वर्णन योग्य था. उस की ईशान कौन में सहस्रबन उबानथा Brip अठारहवा शतक का दूसरा उद्देशा भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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