________________
-
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी
णयरे कत्तिया णामं सेट्ठी परिवसइ अढे जाव अपरिभूए गेगम पढमासणिए गमट्ठ सहस्सं बहुसु कजेसुय कारणेसुय कुटुंबेसुय एवं जहा रायप्पसेणइज्जे चित्ते जाव चक्खुभूए णेगमट्ठसहस्सस्स सीयस्सय कुटुंबस्सय आहेबच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे, समणोवासए अभिगय जीवाजीवे जाव विहरइ ॥ ४ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वए अरहा आदिगरे जहा सोलसमसए तहेव समोसढे जाव परिसा पज्जु
वासइ, ॥ ५ ॥ तएणं से कत्तिएसेट्ठी इमीसे कहाए लढेसमाणे हट्टतुट्ठ एवं ॥ ३ ॥ उस हस्तिनापुर नगर में कार्तिक श्रेष्टि रहता था वह ऋद्धिवंत यावत् अपरिभूत था. सव वणिकों में उस का आसन प्रथम था उन को एक हजार गुमास्ते थे. बहत कार्यों में, कारणों में और कुटुम्बों में वगैरह जैसे राय प्रसेणीय सूम में कहा वैसे यावत् सब मनुष्यों को चलभूत था. वह एक हजार आठ गुमास्ते का व अपने कुटुम्ब का आधिपत्यपना करता हुवा जीवाजीव का स्वरूप जानता हुवा श्रमणोपासक बनकर विचरता था ॥ ४ ॥ उस काल उस समय में अदिके करनेवाले, वगैरह सोलहवे शतक में कहा वैसे मुनिमुव्रत स्वामी पधारे यावत् परिषदा पर्युपासना करने लगी. ॥ ५॥ जब कार्तिक श्रेष्ठिने ऐसी बात सुनी तब वह हृष्ट तुष्ट यावत आनंदित हुवा और अग्यारहवा शतक में जैसे सुदर्शन का
प्रमशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*